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वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं - अफ़ज़ल परवेज़ कविता - Darsaal

वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं

वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं

लेकिन आस के माँझी हर लहज़ा मौजों से खेले हैं

पग पग काँटे मंज़िलों सहरा कोसों जंगल बेले हैं

सफ़र-ए-ज़ीस्त कठिन है यारो राह में लाख झमेले हैं

अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं

प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं

राहज़नों से घबरा कर सब साथी संगत छोड़ गए

और पुर-ख़ौफ़ डगर पर गर्म-ए-सफ़र हम आज अकेले हैं

हुस्न की दौलत उस की है और वस्ल की इशरत भी उस की

जिस ने पल पल हिज्र में काटा जौर सहे दुख झेले हैं

बाज़ीगाह-ए-दार-ओ-रसन में मय-कदा-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न में

हम रिंदों से रौनक़ है हम दरवेशों से मेले हैं

जीवन की कोमल अबला का स्वयंवर रचने वाला है

आओ सला-ए-आम है सब को जितने भी अलबेले हैं

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