Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_fa330118a69a304be7bbba3b2a4c5769, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ - अफ़ज़ल परवेज़ कविता - Darsaal

लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ

लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ

हीर दुहाई देती है राँझे सा यार-ए-ग़ार कहाँ

अपना ख़ून-ए-जिगर पीते हैं तुझ को दुआएँ देते हैं

तेरे मयख़ाने में साक़ी हम सा बादा-ख़्वार कहाँ

हिज्र का ज़ुल्म हमारी क़िस्मत वस्ल की दौलत ग़ैर का माल

ज़ख़्म किसे और मरहम किस को दर्द कहाँ है क़रार कहाँ

हिज्र का ज़ुल्म हमारी क़िस्मत वस्ल की दौलत ग़ैर का माल

ज़ख़्म किसे और मरहम किस को दर्द कहाँ है क़रार कहाँ

पीर-ए-मुग़ाँ क्या कम था मोहतसिबों का भी अब दख़्ल हुआ

मीना पर क्या गुज़रेगी सर फोड़ेंगे मय-ख़्वार कहाँ

सुनते हैं कि चमन महके बुलबुल चहके बन लहके हैं

अपने नशेमन तक जो न पहुँची ऐसी बहार बहार कहाँ

कुंज-ए-मेहन है दार-ओ-रसन है ज़ुल्मत है तन्हाई है

कौन सी जा है हम-सफ़रो ले आई तलाश-ए-यार कहाँ

गुल-चीनों को आज चमन-बंदी का दा'वा है 'परवेज़'

अब देखें लुट कर बिकता है कली कली का सिंघार कहाँ

(801) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Laila Sar-ba-gareban Hai Majnun Sa Aashiq-e-zar Kahan In Hindi By Famous Poet Afzal Parvez. Laila Sar-ba-gareban Hai Majnun Sa Aashiq-e-zar Kahan is written by Afzal Parvez. Complete Poem Laila Sar-ba-gareban Hai Majnun Sa Aashiq-e-zar Kahan in Hindi by Afzal Parvez. Download free Laila Sar-ba-gareban Hai Majnun Sa Aashiq-e-zar Kahan Poem for Youth in PDF. Laila Sar-ba-gareban Hai Majnun Sa Aashiq-e-zar Kahan is a Poem on Inspiration for young students. Share Laila Sar-ba-gareban Hai Majnun Sa Aashiq-e-zar Kahan with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.