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ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं - अफ़ज़ल परवेज़ कविता - Darsaal

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

हम तो शहर के शोर में शब-भर अपनी जान को रोते हैं

किस किस दर्द को अपनाएँ और किस किस ज़ख़्म को सहलाएँ

देखती आँखों क़दम क़दम पर कई हवादिस होते हैं

दिल की दिल्ली लुट गई इस के ऐवानों में ग़दर मची

ख़ुद्दारी के मुग़ल शहज़ादे शहर में ठल्या ढोते हैं

ख़ुश-लहनों के लिए गुलशन भी कुंज-ए-क़फ़स बन जाए तो

जब्र के गुन गाते हैं या नग़्मों में दर्द समोते हैं

शाम ने दिन का साथ छुड़ाया रात ने दश्त में आन लिया

ऐसे सफ़र में रहगीरों पर साँस भी दूभर होते हैं

मैं तो अपनी जान पे खेल के प्यार की बाज़ी जीत गया

क़ातिल हार गए जो अब तक ख़ून के छींटे धोते हैं

दिल के ज़ियाँ का सबब क्या पूछो उन तूफ़ानों को देखो

जिन के भँवर साहिल के सफ़ीनों को भी आन डुबोते हैं

'परवेज़' आज नहीं मिलती है ख़ुम के भाव तलछट भी

इस पर तुर्रा ये है कि साक़ी नश्तर-ए-ता'न चुभोते हैं

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