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लोग हँसने के लिए रोते हैं अक्सर दहर में - अफ़ज़ल मिनहास कविता - Darsaal

लोग हँसने के लिए रोते हैं अक्सर दहर में

लोग हँसने के लिए रोते हैं अक्सर दहर में

तल्ख़ियाँ ख़ुद ही मिला लेते हैं मीठे ज़हर में

प्यार के चश्मों का पानी जब से खारा हो गया

सारी दुनिया घिर गई है नफ़रतों के क़हर में

वक़्त कहता है उभरते डूबते चेहरों को देख

आज तो रौनक़ बड़ी है हादसों की नहर में

जाने ये हिद्दत चमन को रास आए या नहीं

आग जैसी कैफ़ियत है ख़ुशबुओं की लहर में

हम ने पलकों पर सजा रखे हैं अश्कों के चराग़

एक मेला सा लगा है रौशनी के शहर में

चंद आवाज़ें तआ'क़ुब में हैं 'अफ़ज़ल' आज भी

क़ुर्बतों का शहद है तन्हाइयों के ज़हर में

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