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हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है - अफ़ज़ल मिनहास कविता - Darsaal

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

इंसाँ का अक्स फिर भी कई आइनों में है

तहज़ीब को तलाश न कर शहर शहर में

तहज़ीब खंडरों में है कुछ पत्थरों में है

तुझ को सुकूँ नहीं है तो मिट्टी में डूब जा

आबाद इक जहान ज़मीं की तहों में है

कैसा तज़ाद है कि फ़ज़ा है धुआँ धुआँ

और आग है कि ज़ेर-ए-ज़मीं ख़ंदक़ों में है

इंसान बे-हिसी से है पत्थर बना हुआ

मुँह में ज़बान भी है लहू भी रगों में है

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