ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
मिरे मकान पे लिक्खा है घर बराए-फ़रोख़्त
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मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
किसी ने ख़्वाब में आकर मुझे ये हुक्म दिया