ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
उन का घर-बार भी होता है नहीं भी होता
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
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बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
आज ही फ़ुर्सत से कल का मसअला छेड़ूँगा मैं
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की