ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैं
उँगलियों से लिख रहा हूँ चार सू ला-तक़्नतू
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तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
बिछड़ने का इरादा है तो मुझ से मशवरा कर लो
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है