तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
हज़ार बार बताया है वो नहीं हूँ में
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तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो
जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
आज ही फ़ुर्सत से कल का मसअला छेड़ूँगा मैं
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद