तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
तुझ को इस शहर में लाना ही नहीं चाहिए था
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ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है
वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर