तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
ये मिरा दिल है कोई ख़ाली असामी तो नहीं
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इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त