तेरे जाने से ज़्यादा हैं न कम पहले थे
हम को लाहक़ हैं वही अब भी जो ग़म पहले थे
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तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ