साथियो अब मुझे रस्ते में उतरना होगा
डूबती नाव बचाने का नहीं हल कोई और
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तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है
छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
कल अपने शहर की बस में सवार होते हुए
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
आज ही फ़ुर्सत से कल का मसअला छेड़ूँगा मैं
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती