नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
मैं तुझ को भूल गया छोड़ते हुए सिगरेट
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इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
आज ही फ़ुर्सत से कल का मसअला छेड़ूँगा मैं
तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
साथियो अब मुझे रस्ते में उतरना होगा
ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैं
हमारे साँस भी ले कर न बच सके अफ़ज़ल
बिछड़ने का इरादा है तो मुझ से मशवरा कर लो
दालान में सब्ज़ा है न तालाब में पानी