लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की
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इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
कल अपने शहर की बस में सवार होते हुए
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है