इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
वीरानी होती है तो हैरानी होती है
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लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
हमारे साँस भी ले कर न बच सके अफ़ज़ल
जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं
ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैं
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की