इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
अभी हमारी मोहब्बत नई नई है ना
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तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
अब जो पत्थर है आदमी था कभी