हमारे साँस भी ले कर न बच सके अफ़ज़ल
ये ख़ाक-दान में दम तोड़ते हुए सिगरेट
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बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो
छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ कर
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है
इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक