हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
यूँही बाज़ार आए हैं ख़रीदारी नहीं करनी
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ये नुक्ता इक क़िस्सा-गो ने मुझ को समझाया
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
तेरे जाने से ज़्यादा हैं न कम पहले थे
किसी ने ख़्वाब में आकर मुझे ये हुक्म दिया
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैं
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट