दालान में सब्ज़ा है न तालाब में पानी
क्यूँ कोई परिंदा मिरी दीवार पे उतरे
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ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
बिछड़ने का इरादा है तो मुझ से मशवरा कर लो
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ कर
तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है