बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वगर्ना हम तो अपने घर की वीरानी से मर जाएँ
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आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैं
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
दालान में सब्ज़ा है न तालाब में पानी
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
हमारे साँस भी ले कर न बच सके अफ़ज़ल
ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ कर