मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
हर एक काम में मुझ को ख़सारा होने लगा
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क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़
सब को बता रहा हूँ यही साफ़ साफ़ मैं
चुप-चाप निकल आए थे सहरा की तरफ़ हम
कौन सी ऐसी कमी मेरे ख़द-ओ-ख़ाल में है
मैं अपनी ज़ात में जब से सितारा होने लगा
मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं
हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया
ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले
शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे
एक ही दाएरे में क़ैद हैं हम लोग यहाँ
देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है