हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
एक ही इश्क़ दोबारा तो नहीं हो सकता
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अपने बदन से लिपटा हुआ आदमी था मैं
सब को बता रहा हूँ यही साफ़ साफ़ मैं
यहाँ भला कौन अपनी मर्ज़ी से जी रहा है
देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
इसी लिए भी नए सफ़र से बंधे हुए हैं
तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे
क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़
एक ही दाएरे में क़ैद हैं हम लोग यहाँ
मैं सुन रहा हूँ जो दुनिया सुना रही है मुझे
तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है
ज़मीं से आगे भला जाना था कहाँ मैं ने
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली