गुमराह कब किया है किसी राह ने मुझे
चलने लगा हूँ आप ही अपने ख़िलाफ़ में
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तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे
कौन सी ऐसी कमी मेरे ख़द-ओ-ख़ाल में है
ज़मीं से आगे भला जाना था कहाँ मैं ने
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे
मैं सुन रहा हूँ जो दुनिया सुना रही है मुझे
तुम्हें ही सहरा सँभालने की पड़ी हुई है
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले
इसी लिए भी नए सफ़र से बंधे हुए हैं