चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
शहर का शहर हमारा तो नहीं हो सकता
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1077) Peoples Rate This
नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से
मैं अपनी ज़ात में जब से सितारा होने लगा
ज़मीं से आगे भला जाना था कहाँ मैं ने
मिसाल-ए-बर्ग किसी शाख़ से झड़े हुए हैं
किस प्यास से ख़ाली हुआ मश्कीज़ा हमारा
मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली
मिरी नज़र तो ख़लाओं ने बाँध रक्खी थी
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'