जो मुज़य्यन हूँ तिरे हुस्न की ताबानी से
ढूँढती रहती हैं ऐसे ही मनाज़िर आँखें
उस का दिल दीदा-ए-बीना की तरह होता है
बंद रखता है जो हर वक़्त ब-ज़ाहिर आँखें
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(889) Peoples Rate This
हर नग़मा-ए-पुर-दर्द हर इक साज़ से पहले
तेरे जल्वों को रू-ब-रू कर के
यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है
यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगा
दवा-ए-दर्द-ए-ग़म-ओ-इज़्तिराब क्या देता
अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है
मिरी दीवानगी की हद न पूछो तुम कहाँ तक है
दिखा न ख़्वाब हसीं ऐ नसीब रहने दे
ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं
जिन्हें ज़मीर की दौलत ख़ुदा ने बख़्शी है
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
बुलंदी से कभी वो आश्नाई कर नहीं सकता