चल रहे हैं क़तार में सूरज
और चराग़ों की रहनुमाई है
रौनक़ें इस की कम नहीं होतीं
तू ने महफ़िल अजब सजाई है
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हर नग़मा-ए-पुर-दर्द हर इक साज़ से पहले
कर दिया ख़ुद को समुंदर के हवाले हम ने
किसी की याद रुलाये तो क्या किया जाए
तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
ग़मों का एक तूफ़ाँ दिल के अंदर शोर करता है
जो मिरी आरज़ू नहीं करता
हैं आँधियों में भी रौशन चराग़-ए-हक़ 'अफ़ज़ल'
मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'
ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
दयार-ए-इश्क़ में महरूमियों के हैं चर्चे
उस की ख़ुश्बू से मोअ'त्तर है मिरी तन्हाई