आसमानों पे नज़र आती है इस की सुर्ख़ी
जब किसी टूटे हुए दिल पे छुरी चलती है
फट न जाए कहीं क़ातिल का कलेजा 'अफ़ज़ल'
रक़्स करते हुए बिस्मिल पे छुरी चलती है
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ये कौन आया है गुलशन में ताज़गी ले कर
यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगा
तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
ग़मों का एक तूफ़ाँ दिल के अंदर शोर करता है
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो
होता था जिन्हें देख के मसरूर मैं 'अफ़ज़ल'
हैं आँधियों में भी रौशन चराग़-ए-हक़ 'अफ़ज़ल'
कर दिया ख़ुद को समुंदर के हवाले हम ने
लुटा रहा हूँ मैं लाल-ओ-गुहर अँधेरे में
चल रहे हैं क़तार में सूरज
उस की ख़ुश्बू से मोअ'त्तर है मिरी तन्हाई