यही बहुत थे मुझे नान ओ आब ओ शम्अ ओ गुल
सफ़र-नज़ाद था अस्बाब मुख़्तसर रक्खा
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तुम ख़ूब-सूरत दाएरों में रहती हो
हमें भूल जाना चाहिए
हम कसी से पूछे बग़ैर ज़िंदा रहते हैं
मैं चाहता हूँ मुझे मशअलों के साथ जला
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
कोई न हर्फ़-ए-नवेद-ओ-ख़बर कहा उस ने
इस दिल को किसी दस्त-ए-अदा-संज में रखना
दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत
आख़िरी दलील
समुंदर ने तुम से क्या कहा
मोहब्बत