इस दिल को किसी दस्त-ए-अदा-संज में रखना
मुमकिन है ये मीज़ान-ए-कम-ओ-बेश जला दे
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समुंदर ने तुम से क्या कहा
कोई न हर्फ़-ए-नवेद-ओ-ख़बर कहा उस ने
तुम ख़ूब-सूरत दाएरों में रहती हो
सहाब-ए-सब्ज़ न ताऊस-ए-नीलमीं लाया
उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी
मैं चाहता हूँ मुझे मशअलों के साथ जला
वक़्त उन का दुश्मन है
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाएर
सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा
किताब-ए-ख़ाक पढ़ी ज़लज़ले की रात उस ने
इक शाम ये सफ़्फ़ाक ओ बद-अंदेश जला दे