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हमें भूल जाना चाहिए - अफ़ज़ाल अहमद सय्यद कविता - Darsaal

हमें भूल जाना चाहिए

उस ईंट को भूल जाना चाहिए

जिस के नीचे हमारे घर की चाबी है

जो एक ख़्वाब में टूट गया

हमें भूल जाना चाहिए

उस बोसे को

जो मछली के काँटे की तरह हमारे गले में फँस गया

और नहीं निकलता

उस ज़र्द रंग को भूल जाना चाहिए

जो सूरज-मुखी से अलाहिदा दिया गया

जब हम अपनी दोपहर का बयान कर रहे थे

हमें भूल जाना चाहिए

उस आदमी को

जो अपने फ़ाक़े पर

लोहे की चादरें बिछाता है

उस लड़की को भूल जाना चाहिए

जो वक़्त को

दवाओं की शीशों में बंद करती है

हमें भूल जाना चाहिए

उस मलबे से

जिस का नाम दिल है

किसी को ज़िंदा निकाला जा सकता है

हमें कुछ लफ़्ज़ों को बिल्कुल भूल जाना चाहिए

मसलन

बनी-नौ-ए-इंसान

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