ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का

ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का

जो हश्र मुझ पे बपा है वो एहतिमाम उस का

सिपाह-ए-ताज़ा भी उस की सफ़-ए-निगाह से है

सफ़ा-ए-सीन-ए-शमशीर पर है नाम उस का

अमान ख़ेमा-ए-रम-ख़ुर्दगाँ में बाक़ी है

कि ना-तमाम है इक शौक़-ए-क़त्ल-ए-आम उस का

किताब-ए-उम्र से सब हर्फ़ उड़ गए मेरे

कि मुझ असीर को होना है हम-कलाम उस का

दिल-ए-शिकस्ता को लाना है रू-ब-रू उस के

जो मुझ से नर्म हुआ कोई बंद दाम उस का

मैं उस के हाथ से किस ज़ख़्म में कमी रक्खूँ

शुरू-ए-नाज़ भी उस का है इख़्तिताम उस का

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