रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर
ख़ुशबू का पैकर होता तो अच्छा था
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ऐ मेरे मुसव्विर नहीं ये मैं तो नहीं हूँ
किसी ने मुझ से कह दिया था ज़िंदगी पे ग़ौर कर
कर भी लूँ अगर ख़्वाब की ताबीर कोई और
ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या
दीवारों में दर होता तो अच्छा था
जब अपनों से दूर पराए देस में रहना पड़ता है
इस तरह सताया है परेशान किया है
दरीचे में सितारा जागता है
मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा
जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं