ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या

ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या

कल के ग़म को आज के दिन में बोना क्या

ठीक है हम इक-दूसरे के महबूब नहीं

लेकिन मेरे दोस्त तो अब भी होना क्या

और बहुत से काम पड़े हैं करने के

अश्कों के सत-रंगे हार पिरोना क्या

जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं

उस को दिल का हाल सुना कर रोना क्या

बे-शक सारी रात कटी है आँखों में

अब उजयारा फैल गया तो सोना क्या

तुम ने हँसते हँसते नाता तोड़ लिया

लेकिन सच सच बतलाओ ख़ुश होना क्या

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