तमीज़-ए-फ़र्ज़ंद-ए-अर्ज़-ओ-इब्न-ए-फ़लक न करना
तमीज़-ए-फ़र्ज़ंद-ए-अर्ज़-ओ-इब्न-ए-फ़लक न करना
तुम आदमी हो तो आदमी की हतक न करना
ये जम-ओ-तफ़रीक़ ज़र्ब-ओ-तक़सीम की सदी है
अक़ीदा ठहरा अदद की मंतिक़ पे शक न करना
पस-ए-ख़राबात-ए-बंद जारी है मय-गुसारी
सिखाया जाम-ओ-सुबू को हम ने खनक न करना
छलावे बन जाएँ आगे जा कर यही ग़ज़ालाँ
तआक़ुब उन मह-वशों का तुम दूर तक न करना
ये ग़म कि मा'नी तुझे लगे है सराब-ए-मा'नी
अकेले सहना उसे ग़म-ए-मुश्तरक न करना
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