Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_fda9115832d5e78bebc18a527a158f27, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं - आफ़ताब इक़बाल शमीम कविता - Darsaal

नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं

नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं

अब दिन के कटहरे में ख़ता-वार खड़ी हैं

बे-नाम सी आवाज़-ए-शगुफ़्त आई कहीं से

कुछ पतियाँ शायद शजर-ए-शब से झड़ी हैं

निकलें तो शिकस्तों के अँधेरे उबल आएँ

रहने दो जो किरनें मिरी आँखों में गड़ी हैं

आ डूब! उभरना है तुझे अगले नगर में

मंज़िल भी बुलाती है सलीबें भी खड़ी हैं

जब पास कभी जाएँ तो पट भेड़ लें खट से

क्या लड़कियाँ सपने के दरीचों में खड़ी हैं

क्या रात के आशोब में वो ख़ुद से लड़ा था

आईने के चेहरे पे ख़राशें सी पड़ी हैं

ख़ामोशियाँ उस साहिल-ए-आवाज़ से आगे

पाताल से गहरी हैं, समुंदर से बड़ी हैं

(817) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Naslen Jo Andhere Ke Mahazon Pe LaDi Hain In Hindi By Famous Poet Aftab Iqbal Shamim. Naslen Jo Andhere Ke Mahazon Pe LaDi Hain is written by Aftab Iqbal Shamim. Complete Poem Naslen Jo Andhere Ke Mahazon Pe LaDi Hain in Hindi by Aftab Iqbal Shamim. Download free Naslen Jo Andhere Ke Mahazon Pe LaDi Hain Poem for Youth in PDF. Naslen Jo Andhere Ke Mahazon Pe LaDi Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Naslen Jo Andhere Ke Mahazon Pe LaDi Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.