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दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें - आफ़ताब इक़बाल शमीम कविता - Darsaal

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

सर-ए-सलीब ईस्तादा होगा ख़ुदा-ए-इंजील चल के देखें

गुलों ने बंद-ए-क़बा है खोला, हवा से बू-ए-जुनूँ भी आए

करेंगे इस मौसम-ए-वफ़ा में हम अपनी तकमील चल के देखें

ग़नीम-ए-शब के ख़िलाफ़ अब के ज़ियाँ हुई ग़ैब की गवाही

पड़ा हुआ ख़ाक पर शिकस्ता पर-ए-अबाबील चल के देखें

चुने हैं वो रेज़ा रेज़ा मंज़र, लहू लहू हो गई हैं आँखें

चलो ना! उस दुख के रास्ते पर सफ़र की तफ़्सील चल के देखें

फ़ज़ा में उड़ता हुआ कहीं से अजब नहीं अक्स-ए-बर्ग आए

ख़िज़ाँ के बे-रंग आसमाँ से अटी हुई झील चल के देखें

लुढ़क गया शब का कोह-पैमा ज़मीं की हमवारियों की जानिब

कहीं हवा गुल न कर चुकी हो अना की क़िंदील चल के देखें

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