Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_daa769ef08816120022913005a6887fd, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अपनी कैफ़िय्यतें हर आन बदलती हुई शाम - आफ़ताब इक़बाल शमीम कविता - Darsaal

अपनी कैफ़िय्यतें हर आन बदलती हुई शाम

अपनी कैफ़िय्यतें हर आन बदलती हुई शाम

मुंजमिद होती हुई और पिघलती हुई शाम

डगमगाती हुई हर-गाम सँभलती हुई शाम

ख़्वाब-गाहों से उधर ख़्वाब में चलती हुई शाम

गूँध कर मोतिए के हार घनी ज़ुल्फ़ों में

आरिज़-ओ-लब पे शफ़क़ सुर्ख़ियाँ मलती हुई शाम

इक झलक पोशिश-ए-बे-ज़ब्त से उर्यानी की

दे गई दिन के नशेबों से फिसलती हुई शाम

एक सन्नाटा रग-ओ-पय में सदा गूँजता है

बुझ गई जैसे लहू में कोई जलती हुई शाम

वक़्त बपतिस्मा करे आब-ए-सितारा से उसे

दस्त-ए-दुनिया की दराज़ी से निकलती हुई शाम

(831) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Apni Kaifiyyaten Har Aan Badalti Hui Sham In Hindi By Famous Poet Aftab Iqbal Shamim. Apni Kaifiyyaten Har Aan Badalti Hui Sham is written by Aftab Iqbal Shamim. Complete Poem Apni Kaifiyyaten Har Aan Badalti Hui Sham in Hindi by Aftab Iqbal Shamim. Download free Apni Kaifiyyaten Har Aan Badalti Hui Sham Poem for Youth in PDF. Apni Kaifiyyaten Har Aan Badalti Hui Sham is a Poem on Inspiration for young students. Share Apni Kaifiyyaten Har Aan Badalti Hui Sham with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.