Sad Poetry of Aftab Hussain
नाम | आफ़ताब हुसैन |
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अंग्रेज़ी नाम | Aftab Hussain |
जन्म स्थान | Austria |
तिरे बदन के गुलिस्ताँ की याद आती है
खिला रहेगा किसी याद के जज़ीरे पर
गए ज़मानों की दर्द कजलाई भूली बिसरी किताब पढ़ कर
अज़ाब-ए-बर्क़-ओ-बाराँ था अँधेरी रात थी
अपने ही दम से चराग़ाँ है वगरना 'आफ़्ताब'
ये जब्र भी है बहुत इख़्तियार करते हुए
वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ
निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है
मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना
मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है
किसी तरह भी तो वो राह पर नहीं आया
कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में
कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ
जब सफ़र से लौट कर आने की तय्यारी हुई
इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है
घड़ी घड़ी उसे रोको घड़ी घड़ी समझाओ
गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में
दिल भी आप को भूल चुका है
धूप जब ढल गई तो साया नहीं
देखे कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर के रंग भी
दे रहे हैं जिस को तोपों की सलामी आदमी
बस एक बात की उस को ख़बर ज़रूरी है
अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं