सुख में होता है हाफ़िज़ा बेकार
दुख में अल्लाह याद आता है
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तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं
असर देखा दुआ जब रात भर की
जब सफ़र 'अफ़सर' कभी करते नहीं
वतन का राग
जैसा मेरा देस
हाए वो जिस की उम्मीदें हों ख़िज़ाँ पर मौक़ूफ़
आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है
परेशानी है जी घबरा रहा है
चाँद
मुझे फ़र्दा की फ़िक्र क्यूँ-कर हो