जब सफ़र 'अफ़सर' कभी करते नहीं
देखे फिर क्यूँ हो तुम मंज़िल के ख़्वाब
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हाए वो जिस की उम्मीदें हों ख़िज़ाँ पर मौक़ूफ़
जैसा मेरा देस
चाँद
यास है हसरत है ग़म है और शब-ए-दीजूर है
असर देखा दुआ जब रात भर की
है तेरे लिए सारा जहाँ हुस्न से ख़ाली
आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है
तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
परेशानी है जी घबरा रहा है
सुख में होता है हाफ़िज़ा बेकार
मुझे फ़र्दा की फ़िक्र क्यूँ-कर हो
वतन का राग