सरिश्क-ए-ग़म की रवानी थमी है मुश्किल से

सरिश्क-ए-ग़म की रवानी थमी है मुश्किल से

जो बात कहनी थी उन से कही है मुश्किल से

न जाने अहल-ए-जुनूँ पर अब और क्या गुज़रे

अभी तो फ़स्ल-ए-बहाराँ कटी है मुश्किल से

शब-ए-फ़िराक़ न पूछो कि किस तरह गुज़री

सहर हुई तो है लेकिन हुई है मुश्किल से

लगा हुआ है ये धड़का कि बुझ न जाए कहीं

हवा में शम-ए-मोहब्बत जली है मुश्किल से

कहाँ थी मंज़िल-ए-मक़्सूद अपनी क़िस्मत में

किसी की राहगुज़र भी मिली है मुश्किल से

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Sarishk-e-gham Ki Rawani Thami Hai Mushkil Se In Hindi By Famous Poet Afsar Mahpuri. Sarishk-e-gham Ki Rawani Thami Hai Mushkil Se is written by Afsar Mahpuri. Complete Poem Sarishk-e-gham Ki Rawani Thami Hai Mushkil Se in Hindi by Afsar Mahpuri. Download free Sarishk-e-gham Ki Rawani Thami Hai Mushkil Se Poem for Youth in PDF. Sarishk-e-gham Ki Rawani Thami Hai Mushkil Se is a Poem on Inspiration for young students. Share Sarishk-e-gham Ki Rawani Thami Hai Mushkil Se with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.