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मेरे लिए साहिल का नज़ारा भी बहुत है - अफ़सर माहपुरी कविता - Darsaal

मेरे लिए साहिल का नज़ारा भी बहुत है

मेरे लिए साहिल का नज़ारा भी बहुत है

गिर्दाब में तिनके का सहारा भी बहुत है

दम-साज़ मिला कोई न सहरा-ए-जुनूँ में

ढूँडा भी बहुत हम ने पुकारा भी बहुत है

अपनी रविश-ए-लुत्फ़ पे कुछ वो भी मुसिर हैं

कुछ तल्ख़ी-ए-ग़म हम को गवारा भी बहुत है

अंजाम-ए-वफ़ा देख लें कुछ और भी जी के

सुनते हैं ख़याल उन को हमारा भी बहुत है

कुछ रास भी आती नहीं 'अफ़सर' को मसर्रत

कुछ ये कि वो हालात का मारा भी बहुत है

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