मेरे लिए साहिल का नज़ारा भी बहुत है
मेरे लिए साहिल का नज़ारा भी बहुत है
गिर्दाब में तिनके का सहारा भी बहुत है
दम-साज़ मिला कोई न सहरा-ए-जुनूँ में
ढूँडा भी बहुत हम ने पुकारा भी बहुत है
अपनी रविश-ए-लुत्फ़ पे कुछ वो भी मुसिर हैं
कुछ तल्ख़ी-ए-ग़म हम को गवारा भी बहुत है
अंजाम-ए-वफ़ा देख लें कुछ और भी जी के
सुनते हैं ख़याल उन को हमारा भी बहुत है
कुछ रास भी आती नहीं 'अफ़सर' को मसर्रत
कुछ ये कि वो हालात का मारा भी बहुत है
(867) Peoples Rate This