मुझे गुम-शुदा दिल का ग़म है तो ये है
कि इस में भरी थी मोहब्बत किसी की
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कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं
तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो
हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता
वही जो हया थी निगार आते आते
न हो या रब ऐसी तबीअत किसी की
ख़बर देती है याद करता है कोई
फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता