ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1008) Peoples Rate This
बे-क़रारी
फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख
दवाम
गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है
अक्स-बर-अक्स
जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच
जब अपना साया ही दुश्मन है क्या किया जाए
हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है
बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर
आप से उन्स हुआ चाहता है
मोहब्बत