मैं ज़ेहनी तौर से आज़ाद होने लगता हूँ
मिरे शुऊर मुझे अपनी हद के अंदर खींच
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फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख
अक्स-बर-अक्स
जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी
गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है
बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर
हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है
ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा
तू मेरी नींदें तलाशता है यही बहुत है
समय