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पल-दो-पल - अफ़रोज़ आलम कविता - Darsaal

पल-दो-पल

बस

पल-दो-पल की बात है

बे-सबब परेशाँ होते हो

तुम्हें किस बात का ग़म है

क्यूँ उदास रहते हो

देखो

इन नज़ारों को

मस्त आबशारों को

नदियों और पहाड़ों को

सूरज

चाँद

सितारों को

गलियों को बाज़ारों को

शायद तुम बहल जाओ

सोचो जब तुम आए थे

इस तरह रो रहे थे

जैसे बच्चे के हाथ से खिलौना छिन गया हो

फिर तुम ने जो कुछ लिया यहीं से लिया

जो कुछ भी दिया यहीं पे दिया

फिर क्यूँ उदास रहते हो

बस पल-दो-पल की बात है

तुम बे-सबब परेशाँ होते हो

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