अक्स-बर-अक्स

यूँ तो दिए नमनाक में

अक्स-ए-कशीदा हादसात-ओ-वाक़िआ'त की

अपनी कोई अहमियत नहीं होती

लेकिन

मुनअ'किस ज़ेहन ग़ौर ज़रूर करता है

ख़ुद से सवाल करता है

ख़ुद को जवाब देता है

और

अपने जवाब को सच साबित करने के लिए

दलीलें पेश करता है

लेकिन

मैं एक शाइ'र हूँ एक आईना हूँ

समाज का आईना

मिरे दाएरे में आने वाले

वजूद को महफ़ूज़ करना

मिरी फ़ितरत है

ये वजूद

मेरी आँखों में नमी जैसी

मेरे होंटों पे हँसी जैसी

कोई चीज़ रख देता है

फिर भी मेरे लिए ये ज़रूरी नहीं

कि मैं

अपने बातिन में कशीदा

वजूद के दिफ़ाअ' में दलील दूँ

मुझे छुपाने का इख़्तियार है

आप समझने के लिए आज़ाद हैं

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