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यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले - अफ़रोज़ आलम कविता - Darsaal

यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले

यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले

मैं मसर्रतों में गुम था तिरी दोस्ती से पहले

तिरे हुस्न ने जगाया मेरे इश्क़-ए-बे-बहा को

तिरी जुस्तुजू कहाँ थी मुझे शाइ'री से पहले

तू शरीक-ए-ज़िंदगी है मैं हूँ ग़म-गुसार तेरा

तेरा ग़म रहा है शामिल मेरी हर ख़ुशी से पहले

दे अगर मुझे इजाज़त जो मिरा ज़मीर मुझ को

मैं तुझे ख़ुदा बना लूँ तिरी बंदगी से पहले

तिरे हुस्न की कहानी मिरे इश्क़ का फ़साना

बहुत आम हो चुका है ग़म-ए-आशिक़ी से पहले

तुझे रहनुमा बना कर मुझे मिल गई है मंज़िल

मैं बहुत भटक रहा था तिरी रहबरी से पहले

कहो मीर-ए-कारवाँ से मुझे इस तरह न देखे

मैं बड़ा फ़राख़-दिल था कभी दिल-लगी से पहले

ये मता-ए-रंज-ओ-ग़म और शब-ए-हिज्र का ये 'आलम'

था कहाँ मिरा मुक़द्दर तिरी बे-रुख़ी से पहले

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