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उस ने क्यूँ सब से जुदा मेरी पज़ीराई की - अफ़ीफ़ सिराज कविता - Darsaal

उस ने क्यूँ सब से जुदा मेरी पज़ीराई की

उस ने क्यूँ सब से जुदा मेरी पज़ीराई की

मस्लहत-कोश थी हर बात शनासाई की

ज़ख़्म-ए-दिल हम ने सजाए तो इधर भी उस ने

नाज़-ओ-अंदाज़ से जारी सितम-आराई की

जिस्म तरशा हुआ साँचे में ढला है जैसे

दस्त-ए-आज़र ने क़सम खाई हो सन्नाई की

ऐसा सैराब किया उस ने कि ख़ुद तिश्ना-लबी

इक सनद बन गई तारीख़ में सक़्क़ाई की

शुक्र है ऐ शब-ए-हिज्राँ कि बड़ी मुद्दत पर

हो गई दिल से मुलाक़ात भी बीनाई की

शुक्रिया तुम ने बुझाया मिरी हस्ती का चराग़

तुम सज़ा-वार नहीं तुम ने तो अच्छाई की

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